Skip to main content

Cultivation of potato in Hindi


Contemporary technique of Potato cultivation.
(आलू की खेती की उन्‍नत विधि)

आलू भारत की सबसे महत्‍वपूर्ण फसल है। तमिलनाडु एवं केरल को छोडकर आलू सारे देश में उगाया जाता है। भारत में आलू की औसत उपज 152 क्विंटल प्रति हैक्‍टेयर है जो विश्‍व औसत से काफी कम है। अन्‍य फसलों की तरह आलू की अच्‍छी पैदावार के लिए उन्‍नत किस्‍मों के रोग रहित बीजो की उपलब्‍धता बहुत आवश्‍यक है। इसके अलावा उर्वरकों का उपयोग, सिंचाई की व्‍यवस्‍था, तथा रोग नियंत्रण के लिए दवा के प्रयोग का भी उपज पर गहरा प्रभाव पडता है।

भूमि एवं जलवायू सम्‍बंधी आवश्‍यकताऐं :आलू की खेती के लिए जीवांश युक्‍त बलूई-दोमट मिट्टी ही अच्‍छी होती है। भूमि में जलनिकासी की अच्‍छी व्‍यवस्‍था होनी चाहिए । आलू के लिए क्षारीय तथा जल भराव अथवा खडे पानी वाली भूमि कभी ना चुने। बढवार के समय आलू को मध्‍यम शीत की आवश्‍यकता होती है।

उन्‍नत किस्‍म का बीज :आलू की काश्‍त में सबसे महत्‍वपूर्ण बात यह है कि इसका बीज अच्‍छी श्रेणी का हो। अच्‍छे बीज विशेषकर रोगाणूमुक्‍त बीज का प्रयोग करके आलू की पैदावार बढाई जा सकती है। अच्‍छी उपज के लिए जलवायू खण्‍ड या क्षेत्र के अनुसार केवल सिफारिश की गई उपयुक्‍त किस्‍में ही चुने।

उपयुक्‍त माप के बीज का चुनाव :आलू के बीज का आकार और उसकी उपज से लाभ का आपस मे गहरा सम्‍बंध है। बडे माप के बीजों से उपज तो अधिक होती है परन्‍तु बीज की कीमत अधिक होने से पर्याप्‍त लाभ नही होता। बहूत छोटे माप का बीज सस्‍ता होगा परन्‍तु रोगाणुयुक्‍त आलू पैदा होने का खतरा बढ जाता है। प्राय: देखा गया है कि रोगयुक्‍त फसल में छोटै माप के बीजो का अनुपात अधिक होता है। इसलिए अच्‍छे लाभ के लिए 3 से.मी. से 3.5 से.मी.आकार या 30-40 ग्राम भार के आलूओं को ही बीज के रूप में बोना चाहिए।

बुआई का समय एवं बीज की मात्रा :उत्‍तर भारत में, जहॉ पाला पडना आम बात है, आलू को बढने के लिए कम समय मिलता है। अगेती बुआई से बढवार के लिए लम्‍बा समय तो मिल जाता है परन्‍तु उपज अधिक नही होती क्‍योंकि ऐसी अगेती फसल में बढवार व कन्‍द का बनना प्रतिकूल तापमान मे होता है साथ ही बीजों के अपूर्ण अंकुरण व सडन का खतरा भी बना रहता है। अत: उत्‍तर भारत मे आलू की बुआई इस प्रकार करें कि आलू दिसम्‍बर के अंत तक पूरा बन जाऐ। उत्‍तर-पश्चिमी भागों मे आलू की बुआई का उपयुक्‍त समय अक्‍तूबर माह का पहला पखवाडा है। पूर्वी भारत में आलू अक्‍तूबर के मध्‍य से जनवरी तक बोया जाती है।

आलू की फसल में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50 से.मी. व पौधे से पौधे की दूरी 20-25 से.मी. होनी चाहिए। इसके लिए 25 से 30 क्विंटल बीज प्रति हैक्‍टेयर पर्याप्‍त होता है।

बुआई की विधि :पौधों में कम फासला रखने से रोशनी,पानी और पोषक तत्‍वों के लिए उनमें होड बढ जाती है फलस्‍वरूप छोटे माप के आलू पैदा होते हैं। अधिक फासला रखने से प्रति हैक्‍टेयर में पौधो की संख्‍या कम हो जाती है जिससे आलू का मान तो बढ जाता है परन्‍तु उपज घट जाती है। इसलिए कतारों और पौधो की दूरी में ऐसा संतुलन बनाना होता है कि न उपज कम हो और न आलू की माप कम हो। उचित माप के बीज के लिए पंक्तियों मे 50 से.मी. का अन्‍तर व पौधों में 20 से 25 से.मी. की दूरी रखनी चाहिए।

उर्वकों का प्रयोग:फसल में प्रमुख तत्‍व अर्थात नत्रजन, फास्‍फोरस व पोटाश पर्याप्‍त मात्रा में डालें। नत्रजन से फसल की वानस्‍पतिक बढवार अधिक होती है और पौधे के कंदमूल के आकार में भी वृद्धि होती है परन्‍तु उपज की वृद्धि में कंदमूल के अलावा उनकी संख्‍या का अधिक प्रभाव पडता है। फसल के आरम्भिक विकास और वानस्‍पतिक भागों को शक्तिशाली बनाने में पोटाश सहायक होता है। इससे कंद के आकार व संख्‍या मे बढोतरी होती है। आलू की फसल में प्रति हैक्‍टेयर 120 कि.ग्रा. नत्रजन, 80 कि.ग्रा. फास्‍फोरस और 80 कि.ग्रा. पोटाश डालनी चाहिए। उर्वरकों की मात्राा मिट्टी की जांच के आधार पर निर्धारित करते है। बुआई के समय नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्‍फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा डालनी चाहिए। नत्रजन की शेष आधी मात्रा पौधों की लम्‍बाई 15 से 20 से.मी. होने पर पहली मिट्टी चढाते समय देनी चाहिए।

आलू में सिंचाई :आलू में हल्‍की लेकिन कई सिंचाईयों की आवश्‍यकता होती है परन्‍तु खेत में पानी कभी भी भरा हुआ नही रहना चाहिए। खूडों या नालियों में मेढों की उंचाई के तीन चौथाई से अधिक उंचा पानी नही भरना चाहिए। पहली सिंचाई अधिकांश पौधे उगजाने के बाद करें व दूसरी सिंचाई उसके 15 दिन बाद आलू बनने व फूलने की अवस्‍था में करनी चाहिए। कंदमूल बनने व फूलने के समय पानी की कमी का उपज पर बुरा प्रभाव पडता है। इन अवस्‍थाओं में पानी 10 से 12 दिन के अन्‍तर पर दिया जाना चाहिये । पूर्वी भारत में अक्‍तूबर के मध्‍य से जनवरी तक बोई जाने वाली आलू की फसल मे सिंचाई की उपयुक्‍त मात्रा 50 से.मी. ( 6 से 7 सिंचाइयॉ) होती है।

आलू में खरपतवारों की रोकथाम :आलू की फसल में कभी भी खरपतवार न उगने दें। खरपतवार की प्रभावशाली रोकथाम के लिए बुआई के 7 दिनों के अन्‍दर, 0.5 किलोग्राम सिमैजिन 50 डब्‍ल्‍यू.पी. (Cizamin 50 w.p.) या लिन्‍यूरोन (Linuron) का 700 लिटर पानी मे घोल बनाकर प्रति हैक्‍टेयर के हिसाब से छिडकाव कर दें।

आलू कटाई या खुदाई:पूरी तरह से पकी आलू की फसल की कटाई उस समय करनी चाहिए जव आलू के कन्‍दो के छिलके सख्‍त पड जायें। पूर्णतया पकी एवं अच्‍छी फसल से लगभग 300 क्विंटल प्रति हैक्‍टेयर उपज प्राइज़ होती है।

आलू की फसल में कीट पतगें, सुत्रकृमि तथा बीमारीयॉ:आलू की फसल में कंद वाले शलभ (Tubber Moth), कटुवा कीडे, जैसिड (Jassid) और माहू या चेंपा (Afid) से बहुत नुकसान होता है।

टयूबर मॉथ कीडे के लारवा कंदमूल मे सुराख बना देते हैं। यदि कंद को मिट्टी से ढका न गया तो ये कीडे फसल को बहुत नुकसान पंहुचाते है। कंद वाले शलभ जैसे ही दिखाई दें इन पर 0.07 प्रतिशत ऐन्‍डोसल्‍फान या 0.05 प्रतिशत मैलाथियान का छिडकाव करें और कंद को मिट्टी से ढक दें।

कटुवा कीडे पौधों का उनकी जडों के पास, भूमि के निचे ही काट देते हैं। इनकी रोकथाम के लिए बुआई से पहले 5 प्रतिशत एल्ड्रिन या हैप्‍टाक्‍लोर 20 से 25 किलोग्राम प्रति हैक्‍टेयर की दर से खेत की मिट्टी में मिलाऐं। खडी फसल में कटुवा का प्रकोप होने पर उपरोक्‍त दवा का बुरकाव पौधों की निचली सतह पर करते है।

जैसिड नर्म शरीर वाले हरे रंग के कीडे होते हैं जो पौधों के पत्‍तों और अन्‍य कोमल भागों का रस चूस लेते हैं।

माहू या चेंपा ( एफिड) आलू में लगने वाले हरे रंग के किडे होते हैं जो पत्‍ती की निचली सतह पर पाए जाते हैं और पत्‍तों का रस चूसते हैं। इनके कुप्रभाव से प‍त्तियां उपर को मुड जाती हैं और उनकी बढवार रूक जाती है। माहू या चेंपा लगने पर 0.07 प्रतिशत ऐन्‍डोसल्‍फान या 0.05 प्रतिशत मैलाथियान का छिडकाव करें।

जड गांठ सुत्रकृमि (Root Knote Nematode) प्रभावित पौधें की पत्तियां सामान्‍य पौधों की पत्तियों से बडी हो जाती हैं पौधों की बढवार रूक जाती है तथा गर्म मौसम में रोगी पौधे सूख जाते हैं। जडों मे अत्‍यधिक गॉठे हो जाती हैं। जडों की दरारों में प्राय दूसरे सूक्ष्‍मजीव जैसे फफूंद, जीवाणू आदि का आक्रमण होता है। बचाव के लिए फसल चक्र में मोटे अनाज वाली फसलों को लाना चाहिए। ग्रीटिंग्स ऋतु में 2-3 बार जुताई करनी चाहिए । बुआई से पहले एल्‍डीकार्ब, कार्बोफ्यूरान का 2 किलोग्राम सक्रिय भाग प्रति हैक्‍टेअर की दर से खेत में डालना चाहिए।

आलू की फसल मे अनेक बीमारीयॉ जैसे झुलसा, पत्‍ती मुडना व मोजेक आदि लगती हैं। इन बीमारियों से फसल को बहुत नुकसान होता है। इनसे फसल को बचाना बहुत आवश्‍यक जरूरी है

Comments

Popular posts from this blog

Some Information about seed industry

Some Important Information about seed industry. Courtesy by : Mr Sharad Deshpande Team connect. 

Microprocessor Based Agriculture Instrumentation

The credential part of this paper subjects the application of microprocessors in providing better measurement and automation systems in the field of agriculture. Agriculture being the world’s oldest and most enterprising industry requires improvements in quality evaluation and control of its products. And Indian economy being predominately agriculture based should make the best use of this technology to obtain best results. Sustainable agriculture is the requirement of this century to maintain the sustainability so as to entertain the needs of population even under the limited land and other resource availability. It can be better defined as the one which over a long term enhances the environmental quality and farming community as a whole. As electronic sensing devices, microprocessors provide a wide range of application in agriculture such as better management of fertilizers, measurement of moisture and nutrient content of soil, monitoring the crop environment. These sensors are als

Seed Companies of India

SEED COMPANIES   A.G.Sunseeds (I) Pvt.Ltd. C/o P.M.Parikh Bungalow Opp.Motilal Mangal Karyalaya, Motinagar, Latur- 4132512 Advanta India Limited (formerly ITC zeneca Ltd) 309 3 rd  Floor, Raheja Chambers, Mauseum Road, Bangalore – 560 001 Tel: (080) 5594524 Fax: 5594525 Agri Genetic Research Organisation Pvt.Ltd Soman Commercial Complex, Datta Chowk, Yawatmal-445 001 Tel: (07232) 44144,44611,44201 Agro Biotech 216, Oppanakara Street, Coimbatore-641 001 Ajeet Seed Pvt.Ltd Tapadiya Terraces, IInd Floor, Adalat Road, Aurangabad-431 001 Tel: (0240) 332572,320010 Fax 333335 Ajinkya Seeds Survey No.14,Wadgaon (Bk), Anandnagar, Pune: 411 051 Tel: (020) 433 4052 Amereswara Agri Tech Pvt. Ltd. 301,Durga Apartment, Solnaji Guda, Hyderabad:500 082 Tel: 310858/4987 Fax: 310858 Andhra Pradesh State Seeds Development Corpn. Ltd. 5-10-193,2 nd  Floor, Haca Bhavan, Hyderabad: 500 004 Tel: (0842) 236088,234295 Fax : 240099 Ankur Hybrid Seed Corporation Mirz